A Set Of My Two Poems: রাঘবপুরের কথা & मेरी आकांक्षा
রাঘবপুরের কথা
গেলাম সেদিন রাঘবপুরে,
যেই শহর আছে… জগত থেকে বহু দূরে।
রাস্তা গেছে একে – বেঁকে,
একবার তো এস দেখে।
হিংসা , ঝগড়া , লড়াই, কারুর মন -হৃদয়ে নাই।
ভগবান সত্যা আছেন রাঘবপুরে ,
যে শহর আছে… আকাশ ,
এবং স্বর্গ থেকে বহু দূরে।
রাম , সীতা , লক্ষন,
ব্রহ্মা , বিষ্ণু, মহেশ্বর,
আসেন তারা রাঘবপুরে,
প্রায় হাজার -হাজার বচ্ছর ধরে ।
গাছ এখানে হাটে-ছোটে,
পাখি কয় কথা ,
তবে রাঘবপুরে কুসংস্কারের, চলে না কোন প্রথা !
—END—
मेरी आकांक्षा
किस गली मैं चल परा ,
अनजाना सा लगा ज़रा ज़रा,
कुछ तो कैद है मुझमें ,
जिसे मैं आज़ाद करने निकल परा |
मेरा मन मुझसे यह पूछता है ,
“करके दिखा जो तू करना चाहता है,
हर कोई इस दुनिया में…
एक ही जीवन तोह पाता है |
में अपने आप में खोया रहता हूँ,
किसी से कुछ नहीं कहता हूँ,
फिर भी यह नासमझ दुनिया ,
यह-वह क्यों कहता है?
मुझे अपने आप पर है विश्वास ,
एक दिन मैं जरूर बनूँगा कुछ ख़ास |
लोग समझेंगे नहीं ,
उनके बेमतलब सवालों का कोई जवाब नहीं |
भगवान पर है आस्था ,
वह हर पल मुझे दिखायेंगे सही रास्ता|
—The End—